शहर काज़ी का ऐलान, नई ईदगाह में नहीं होगी ईद की नमाज, पुरानी ईदगाह लक्कड़पीठा पर सुबह 8.30 बजे पढ़ाई जाएगी नमाज

Shahar Qazi announced that Eid prayers will not be offered at the new Eidgah, namaz will be offered at 8.30 am at the old Eid Lakkadipitha

शहर काज़ी का ऐलान,  नई ईदगाह में नहीं होगी ईद की नमाज, पुरानी ईदगाह लक्कड़पीठा पर सुबह 8.30 बजे पढ़ाई जाएगी नमाज

आने वाली 7 जून को बकरा ईद याने कि ईद उल अजहा का त्यौहार मनाया जाएगा। ईद की नमाज को लेकर रतलाम शहर काज़ी अहमद अली ने अपने लेटरहेड पर एक ऐलान करते हुए बताया कि बिरादराने इस्लाम को यह इत्तेला दी जाती है कि 7 जून बरोज़ सनीचर बकरा ईद की नमाज़ पुरानी ईदगाह लक्कड़ पीठा पर सुबह 8.30 बजे अदा की जाएगी। इंशा अल्लाह और सभी से गुजारिश की है कि ये ईद की नमाज़ ईदगाह में ही अदा करे। बता दें कि नई ईदगाह में बकरीद की नमाज़ नहीं होगी।

 बकरीद के दिन कुर्बानी  देने की परंपरा है। कुरबानी अपने बुरे कर्मों को भी देनी होती है और एक नई शुरुआत करनी होती है। आमतौर तो पर बकरे की कुबार्नी दी जाती है। कुर्बानी के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है. एक हिस्सा खुद के लिए, दूसरा हिस्सा उन रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए, जिनके घर कुर्बानी नहीं हुई हो और तीसरा हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों में बांटा जाता है। यह पर्व कुर्बानी के साथ-साथ अल्लाह के प्रति समर्पण का प्रतीक है।

इसलिए मनाई जाती है बकरीद

बकरीद की शुरुआत ऐतिहासिक और आध्यात्मिक घटना से जुड़ी हुई है. इस्लामिक मान्यता के मुताबिक, अल्लाह ने हजरत इब्राहिम की आस्था की परीक्षा लेने के लिए ख्वाब में आकर उन्हें अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी देने की बात कही थी। हजरत इब्राहिम अल्लाह में विश्वास रखते थे और उन्होंने इस ख्वाब को अल्लाह का पैग़ाम मानते हुए अपने प्यारे और बड़े बेटे की कुर्बानी देने का फैसला लिया। कुर्बानी वाले दिन जब कुर्बानी का समय आया तो हजरत इब्राहिम की आस्था देखकर अल्लाह ने उनके बेटे की जान बख्श दी और बेटे की जगह एक दुंबा कुर्बान हो गया। इस दूंबे को अल्लाह ने ही रखा था और बेटे को कुर्बान होने से बचा लिया था। तभी से अल्लाह के प्रति समर्पण का त्योहार बकरीद मनाने की परंपरा शुरू हुई।

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